Wednesday, May 2, 2007

चार लाइने....

मैं आज स्वयं से लड़लड़कर
किस मंजिल पर आ पहुंचा
स्तब्ध निशा हर ओर बस रही
ठहरा सा आकाश समुचा..

6 comments:

ePandit said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है बेकल उत्साही जी। नियमित लेखन हेतु मेरी तरफ से शुभकामनाएं।

नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर अवश्य जाएं।

ई-पंडित

रवि रतलामी said...

अगर आप वही बेकल उत्साही हैं, तो यह सचमुच हिन्दी चिट्ठाजगत् के लिए उत्साह की बात है.

बधाई व शुभकामनाएँ.

क्षितिज said...

आप लोगों का उत्साहवर्धन पाकर मैं धन्य हुआ..आगे भी मिलता रहेगा..आशा करता हूं ...रविरत्लामी जी के शायद गलत समझ रहे हैं..... मैं तो बस यूं ही काग़ज को रंग लेता हूं..यूं कहिये अभी सीखने की प्रक्रिया में हूं...

dhurvirodhi said...

आपके आने से पहले हम बेकल थे.
अब उत्साह आ गया है.

Sanjeet Tripathi said...

स्वागत है यहां बेकल जी का।
शुभकामनाएं

Atul Sharma said...

मैं भी कुछ रविरतलामीजी जैसा ही समझा हूँ। आपका चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है।